भारत में कुपोषण एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है, जिसे कई दशकों से नीति निर्माण और कार्यक्रमों के माध्यम से संबोधित करने का प्रयास किया गया है। हालांकि, कुपोषण के उच्च स्तर के बावजूद, इसमें सुधार की काफी गुंजाइश है। यहां हम कुपोषण को समाप्त करने के लिए मौजूदा नीतियों की समीक्षा, नए नीतिगत सुधार, और संभावित नई नीतियों के बारे में चर्चा करेंगे।
भारत में कुपोषण: मौजूदा स्थिति
भारत में कुपोषण एक जटिल समस्या है जो पोषण, स्वास्थ्य, स्वच्छता और सामाजिक-आर्थिक कारकों से जुड़ी हुई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, भारत में लगभग 36% बच्चे स्टंटेड (विकास में बाधा), 19% बच्चे वेस्टेड (वजन में कमी) और 32% बच्चे अंडरवेट (वजन कम) हैं।
मौजूदा नीतियों की समीक्षा
भारत सरकार ने कुपोषण से निपटने के लिए कई नीतियां और कार्यक्रम लागू किए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख नीतियां और कार्यक्रम निम्नलिखित हैं:
1. एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS): यह कार्यक्रम 1975 में शुरू किया गया था और यह माताओं और बच्चों के लिए पूरक पोषण, टीकाकरण, स्वास्थ्य जांच और पोषण शिक्षा जैसी सेवाएं प्रदान करता है।
2. मध्याह्न भोजन योजना (MDM): इस योजना के तहत, सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मुफ्त में भोजन प्रदान किया जाता है। यह योजना न केवल कुपोषण को कम करने में मदद करती है, बल्कि स्कूल में बच्चों की उपस्थिति भी बढ़ाती है।
3. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM): NHM के तहत, कुपोषण को रोकने और नियंत्रित करने के लिए कई कार्यक्रम चलाए जाते हैं, जिनमें मातृ और बाल स्वास्थ्य सेवाएं, टीकाकरण और पौष्टिक खाद्य पदार्थों का वितरण शामिल है।
4. प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): यह योजना गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की पोषण स्थिति में सुधार के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
5. पोशन अभियान: 2018 में शुरू किया गया पोशन अभियान (राष्ट्रीय पोषण मिशन) का उद्देश्य 2022 तक कुपोषण की व्यापकता को कम करना है। इसका लक्ष्य माताओं, बच्चों और किशोरियों में कुपोषण को संबोधित करना है।
कुपोषण नीति में सुधार की आवश्यकता
हालांकि उपरोक्त नीतियों और कार्यक्रमों ने कुछ हद तक कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में मदद की है, लेकिन कुपोषण की व्यापकता को देखते हुए नीतिगत सुधार की आवश्यकता है। सुधार के लिए कुछ प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है:
1. समन्वित दृष्टिकोण: मौजूदा नीतियों और कार्यक्रमों में अक्सर विभागों के बीच समन्वय की कमी होती है। एक समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण को अपनाना चाहिए, जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, और स्वच्छता को एक साथ संबोधित किया जाए।
2. लक्षित हस्तक्षेप: विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों में कुपोषण की दरें भिन्न हो सकती हैं। नीतियों को अधिक लक्षित और स्थानीयकृत किया जाना चाहिए, जिससे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में अधिक ध्यान दिया जा सके।
3. समय पर निगरानी और मूल्यांकन: कुपोषण कार्यक्रमों की प्रभावशीलता की समय पर निगरानी और मूल्यांकन आवश्यक है। इससे पता चलेगा कि कौन से कार्यक्रम काम कर रहे हैं और कहां सुधार की आवश्यकता है।
4. मल्टी-स्टेकहोल्डर एंगेजमेंट: सरकारी एजेंसियों, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs), निजी क्षेत्र और स्थानीय समुदायों के बीच बेहतर समन्वय और साझेदारी की आवश्यकता है। इससे कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में सुधार होगा और अधिक संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकेगा।
5. पोषण शिक्षा और जागरूकता: पोषण शिक्षा और जागरूकता अभियानों को बढ़ावा देना जरूरी है। इससे माताओं, बच्चों और किशोरियों को सही पोषण संबंधी जानकारी प्राप्त होगी और वे अपने आहार में सुधार कर सकेंगे।
नई नीतियों के प्रस्ताव
कुपोषण के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करने के लिए नई नीतियों की जरूरत है। कुछ संभावित नीतियां और कार्यक्रम निम्नलिखित हैं:
1. पोषण संवेदनशील कृषि नीति: कृषि और पोषण को जोड़ने वाली नीतियां बनाई जानी चाहिए, जिससे पोषण समृद्ध फसलों के उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा मिल सके। कृषि विविधीकरण, बायोफोर्टिफिकेशन (पोषण संवर्धित फसलों) और स्थानीय खाद्य उत्पादों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
2. मल्टी-सेक्टोरल पोषण मिशन: एक मल्टी-सेक्टोरल पोषण मिशन शुरू किया जा सकता है, जिसमें स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा, और ग्रामीण विकास मंत्रालयों के साथ-साथ निजी क्षेत्र और नागरिक समाज के संगठनों की भागीदारी हो। इसका उद्देश्य समग्र रूप से कुपोषण को संबोधित करना होगा।
3. किशोरी बालिकाओं के लिए विशेष कार्यक्रम: किशोरी बालिकाओं के पोषण में सुधार के लिए विशेष कार्यक्रम शुरू किए जा सकते हैं, जो आयरन, फोलिक एसिड और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
4. डिजिटल पोषण निगरानी: कुपोषण की निगरानी और मूल्यांकन के लिए डिजिटल टूल्स और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग किया जा सकता है। इससे वास्तविक समय में डेटा संग्रह और विश्लेषण की सुविधा होगी, जिससे नीति निर्माताओं को बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलेगी।
5. स्थानीय और पारंपरिक आहार को बढ़ावा देना: स्थानीय और पारंपरिक खाद्य पदार्थों के पोषण मूल्य को पुनर्जीवित और बढ़ावा दिया जा सकता है। ये आहार न केवल पोषण में सुधार कर सकते हैं, बल्कि स्थानीय कृषि और खाद्य प्रणालियों को भी समर्थन दे सकते हैं।
6. पोषण भत्ता और भोजन सुरक्षा: गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों के लिए पोषण भत्ते और भोजन सुरक्षा कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, ताकि उनकी खाद्य और पोषण की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
निष्कर्ष
भारत में कुपोषण को समाप्त करने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें मौजूदा नीतियों का सुधार, नई नीतियों का निर्माण, और सभी संबंधित पक्षों की सक्रिय भागीदारी शामिल हो। पोषण संवेदनशील कृषि, किशोरी बालिकाओं पर विशेष ध्यान, और डिजिटल निगरानी जैसे नीतिगत सुधार और नई नीतियां इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं। सरकार, नागरिक समाज, और समुदायों के सम्मिलित प्रयासों से ही भारत कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में सफलता प्राप्त कर सकता है।
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