Thursday, August 22, 2024

भारत के खिलौने

आगे बढने की सोच।
भारतीय खिलौनों का बाजार लगभग 10000 करोड़ का है और इस बाजार में चीन की हिस्सेदारी 85 से 90 प्रतिशत है।

बचपन मे मन मे बैठी छवि जीवन भर हमे संचालित करती है।
जीवन शैली के सर्वश्रेष्ठ होने की अवधारणा खिलौनों ओर अन्य उत्पादो के जरिये विकास किया जा सकता है।

भारत के hero की छवि चरित्रों पानी की बोतल बस्तों शर्ट पैंट पर भी छाप कर सांस्कृति को सामाज में लाया जा सकता है।

भारतीय सुपर हीरो..... झांसी की रानी, स्वामी विवेकानंद, पंडित रामकृष्ण, आर्यभट ,

ये चरित्र स्मार्ट बिजनेस मंत्र में शामिल होने चाहिए।

छोटी साइकिल, कुर्सियों, जूते बच्चो के काम और जीवन शैली से जोड़ी जा सकती है।

ईरान में बार्बी के मुकाबले अपनी सारा नाम की गुड़िया बनाई थी। बार्बी पश्चिमी वेशभूषा ओर सारा का सिर ढाका हुआ था।

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पर्यावरण
भारतीय मूल्य
 

भारत के खिलौना उद्योग ने पिछले कुछ वर्षों में तेजी से विकास किया है, लेकिन अभी भी इसमें सुधार और नीतिगत बदलाव की आवश्यकता है ताकि यह वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सके और देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सके। यहां हम भारत में खिलौना नीति के स्तरीय सुधार, वर्तमान नीतियों की समीक्षा, और संभावित नई नीतियों के बारे में चर्चा करेंगे।

 

 खिलौना उद्योग की मौजूदा स्थिति

 

भारत का खिलौना उद्योग अभी भी विकास के चरण में है, और यह मुख्य रूप से असंगठित क्षेत्रों में केंद्रित है। भारतीय बाजार में अधिकांश खिलौने चीन और अन्य देशों से आयात किए जाते हैं, जो घरेलू निर्माताओं के लिए एक बड़ी चुनौती है। इसके अलावा, भारतीय खिलौनों की गुणवत्ता, सुरक्षा मानकों, और नवाचार में भी सुधार की आवश्यकता है।

 

 मौजूदा नीतियों की समीक्षा

 

भारत सरकार ने खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें प्रमुख नीतियां और पहलें शामिल हैं:

 

1. कस्टम ड्यूटी में वृद्धि: भारतीय सरकार ने आयातित खिलौनों पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाई है, जिससे घरेलू खिलौना उद्योग को संरक्षण मिला है और स्थानीय निर्माताओं को प्रोत्साहन मिला है।

 

2. क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर (QCO): 2020 में, सरकार ने खिलौनों के लिए क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर (QCO) जारी किया, जिसके तहत सभी खिलौनों के लिए ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) प्रमाणन अनिवार्य किया गया है। यह कदम खिलौनों की गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है।

 

3. वोकल फॉर लोकल: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के "वोकल फॉर लोकल" अभियान के तहत, भारतीय खिलौना निर्माताओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस अभियान का उद्देश्य घरेलू उत्पादों को बढ़ावा देना और उन्हें वैश्विक मंच पर स्थापित करना है।

 

4. मेक इन इंडिया: मेक इन इंडिया अभियान के तहत खिलौना उद्योग को भी ध्यान में रखा गया है, जिसमें घरेलू उत्पादन और निवेश को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

 

 खिलौना नीति में सुधार की आवश्यकता

 

हालांकि मौजूदा नीतियों और पहल ने खिलौना उद्योग को कुछ हद तक समर्थन दिया है, फिर भी कुछ सुधार की आवश्यकता है ताकि यह उद्योग अधिक प्रतिस्पर्धी और नवाचार केंद्रित बन सके। सुधार के लिए कुछ प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है:

 

1. प्रौद्योगिकी और नवाचार में निवेश: भारतीय खिलौना उद्योग को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए अनुसंधान और विकास (R&D) में अधिक निवेश की आवश्यकता है। यह नवाचार और डिजाइन में सुधार करने के लिए आवश्यक है।

 

2. कौशल विकास: खिलौना निर्माण के लिए आवश्यक कौशल की कमी है। सरकार को कौशल विकास कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता है, जो खिलौना उद्योग के लिए आवश्यक तकनीकी और डिजाइन कौशल को विकसित कर सके।

 

3. लॉजिस्टिक्स और सप्लाई चेन में सुधार: खिलौना उद्योग के विकास के लिए लॉजिस्टिक्स और सप्लाई चेन में सुधार की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि कच्चे माल से लेकर तैयार उत्पाद तक की पूरी प्रक्रिया कुशल और लागत प्रभावी हो।

 

4. सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों का सख्त अनुपालन: खिलौनों की सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों का सख्त अनुपालन सुनिश्चित करना आवश्यक है। इसके लिए सरकार को निगरानी और निरीक्षण तंत्र को मजबूत करना चाहिए।

 

5. विदेशी बाजारों में प्रवेश: भारतीय खिलौना निर्माताओं को वैश्विक बाजारों में प्रवेश करने के लिए अधिक समर्थन की आवश्यकता है। इसके लिए निर्यात प्रोत्साहन, विपणन सहायता, और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भागीदारी को बढ़ावा देना जरूरी है।

 

 नई नीतियों के प्रस्ताव

 

खिलौना उद्योग को सुदृढ़ बनाने और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में लाने के लिए नई नीतियों की आवश्यकता है। कुछ संभावित नीतियां और कार्यक्रम निम्नलिखित हैं:

 

1. खिलौना क्लस्टर विकास: सरकार को विभिन्न राज्यों में खिलौना क्लस्टरों का विकास करना चाहिए, जहां खिलौना निर्माण इकाइयों को एकीकृत सुविधाएं, प्रौद्योगिकी, और कौशल विकास की सुविधा मिले। ये क्लस्टर उद्योग को संगठित और कुशल बनाने में मदद करेंगे।

 

2. खिलौना डिजाइन और नवाचार केंद्र: खिलौना डिजाइन और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र स्थापित किए जा सकते हैं। ये केंद्र R&D, डिज़ाइन, प्रोटोटाइप निर्माण, और परीक्षण सेवाएं प्रदान करेंगे।

 

3. आर्थिक सहायता और प्रोत्साहन: नए उद्यमियों और छोटे निर्माताओं के लिए वित्तीय सहायता और प्रोत्साहन योजनाएं शुरू की जा सकती हैं। इसमें आसान ऋण सुविधा, कर रियायतें, और सब्सिडी शामिल हो सकते हैं।

 

4. मूल्य श्रृंखला में पारदर्शिता और कुशलता: खिलौना उत्पादन की मूल्य श्रृंखला को पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए डिजिटल टूल्स और टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जा सकता है। इससे लागत में कमी और उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार होगा।

 

5. रचनात्मक और सांस्कृतिक खिलौनों का विकास: भारत की सांस्कृतिक धरोहर को ध्यान में रखते हुए रचनात्मक और सांस्कृतिक खिलौनों का विकास किया जा सकता है। ये खिलौने न केवल घरेलू बाजार में लोकप्रिय होंगे, बल्कि वैश्विक बाजार में भी भारत की पहचान को मजबूत करेंगे।

 

6. खिलौना उद्योग के लिए निर्यात प्रोत्साहन: भारतीय खिलौना उद्योग के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विशेष निर्यात प्रोत्साहन योजनाएं शुरू की जा सकती हैं। इसके तहत, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में ब्रांडिंग, मार्केटिंग, और प्रमोशन के लिए वित्तीय सहायता दी जा सकती है।

 

7. अंतरराष्ट्रीय सहयोग और साझेदारी: भारतीय खिलौना निर्माताओं को अंतरराष्ट्रीय खिलौना कंपनियों और डिजाइनरों के साथ सहयोग और साझेदारी के अवसर प्रदान किए जा सकते हैं। इससे उद्योग में नवीनतम तकनीक और डिजाइन की जानकारी उपलब्ध होगी।

 

 निष्कर्ष

 

भारत का खिलौना उद्योग एक महत्वपूर्ण चरण में है, जहां यह तेजी से विकास कर सकता है यदि इसे सही दिशा में प्रोत्साहन और समर्थन मिले। मौजूदा नीतियों में सुधार और नई नीतियों के कार्यान्वयन के माध्यम से, भारत वैश्विक खिलौना बाजार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन सकता है। यह न केवल आर्थिक विकास में योगदान करेगा बल्कि देश की सांस्कृतिक धरोहर को भी विश्व स्तर पर पहचान दिलाएगा।

 

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