Thursday, October 15, 2020

नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन




इस मिशन में नागरिकों का एक डिजिटल हेल्थ कार्ड बनाया जाएगा, जिसमें उनका हेल्थ रिकार्ड यानी उनकी सेहत और बीमारी से संबंधित सभी जानकारियां डिजिटल रूप से सुरक्षित रखी जाएंगी, ताकि जरूरत पड़ने पर उन्हें देखा जा सके। इस तरह विकसित होने वाले डिजिटल इकोसिस्टम (पारिस्थितिकी तंत्र) की मदद से आम जनता को स्वास्थ्य सुविधाएं आसानी से मिल सकेंगी। इसमें भारतीय नागरिकों, स्वास्थ्य पेशेवरों, सार्वजनिक अस्पतालों के साथ-साथ निजी क्षेत्र के संस्थानों के बीच सेहत की जांच, निगरानी और स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने वाला एक पुख्ता नेटवर्क बन सकेगा। इससे लोगों में स्वास्थ्य जागरूकता आ सकती है और बीमारियों के त्वरित एवं सटीक इलाज की व्यवस्था बन सकती है।

पुरानी बीमारियों के इलाज का रिकार्ड मौजूद नहीं होने पर कई बार गलत इलाज की चपेट में भी आ जाते हैं। ऐसे में मर्ज से बड़ी समस्या उसके निदान की प्रक्रिया हो जाती है। यह तथ्य भी कई बार सामने आ चुके हैं कि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा बीमारियों के इलाज में ही गरीब हुआ जा रहा है, क्योंकि अक्सर उन्हें यही नहीं पता चलता है कि आखिर उन्हें हुआ क्या है? किस बीमारी का क्या इलाज है और कहां इलाज हो सकता है? इसकी जानकारी नहीं होने पर मरीज गलत हाथों में पड़ जाते हैं। ऐसे में सही इलाज की पहली सीढ़ी मरीज और उसके तीमारदार को इसकी जानकारी मिलना है कि आखिर बीमारी क्या है या मरीज को इससे पहले क्या मर्ज था और उसका क्या इलाज था?

डाटा से आएगी नई क्रांति : आमतौर पर ऐसे सारे रिकार्ड रखने की जिम्मेदारी व्यक्तिगत मानी जाती है, लेकिन सरकार के स्तर पर महसूस किया गया कि अगर लोगों की बीमारियों का कोई डाटाबेस तैयार हो सके और संबंधित जानकारियों को एक डिजिटल कार्ड में समाहित किया जा सके तो इस क्षेत्र में क्रांतिकारी सुधार हो सकता है। भारत ऐसी व्यवस्था करने वाला दुनिया का पहला देश नहीं है, बल्कि कई अन्य देशों में ऐसी व्यवस्था पहले से मौजूद है। जैसे ब्रिटेन और दक्षिण कोरिया में डिजिटल हेल्थ रिकार्ड की व्यवस्था और अमेरिका में कायम नेशनल हेल्थ सíवस आदि का इस संबंध में अध्ययन किया गया। उल्लेखनीय है कि डिजिटल हेल्थ कार्ड जैसी योजना की प्रेरणा के पीछे एक भूमिका प्रधानमंत्री जन आरोग्य (आयुष्मान भारत) योजना की है। तीन साल पहले 25 सितंबर, 2018 को देश के 25 राज्यों में औपचारिक रूप से आयुष्मान योजना को जब लागू किया गया तो यह उम्मीद जगी थी कि अब देश के वंचित, उपेक्षित और गरीब लोगों को बीमारियों के इलाज में कोई समस्या नहीं होगी।

नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन की शुरुआत पिछले साल अंडमान-निकोबार, चंडीगढ़, दादरा-नगर हवेली, दमन-दीव, लद्दाख और लक्षद्वीप में हुई थी, लेकिन अब पूरे देश में इसे लागू किया जा रहा है।
हमारे देश में स्वास्थ्य सुविधाएं बहुत ही लचर हालत में हैं। यहां सरकारी चिकित्सा सेवाओं में अक्सर लापरवाही, संसाधनों का दुरुपयोग और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार देखा जाता है। निजी क्षेत्र में भी स्वास्थ्य सेवाओं के मानक तय नहीं हैं। निजी अस्पताल जांच, टेस्ट, इलाज और दवाओं आदि के नाम पर अनाप-शनाप रकम वसूलते हैं। इसलिए डिजिटल हेल्थ कार्ड और नेशनल डिजिटल स्वास्थ्य मिशन से तमाम अनियमितताओं पर रोक लगने की उम्मीद की जा रही है,

जहां तक राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन से जुड़े यूनिक हेल्थ कार्ड की बात है तो अभी इसके कई फायदे एक साथ दिख रहे हैं। इससे सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि एक बार बीमारी की कोई जांच हो जाने और उसका इलाज शुरू हो जाने के बाद देश में कहीं भी जाने पर कोई जांच रिपोर्ट, डाक्टर की पर्ची, बीमारी के पुराने रिकार्ड आदि संभाल कर रखने और ले जाने की जरूरत नहीं होगी। ये सभी सूचनाएं हेल्थ कार्ड में दर्ज होंगी और चिकित्सक किसी मरीज की आइडी से जान जाएंगे कि मरीज पहले किन बीमारियों की चपेट में रहा है और उसका किस स्तर पर कहां एवं कितना इलाज हुआ है। आधार कार्ड या मोबाइल नंबर के माध्यम से नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन की वेबसाइट पर हेल्थ आइडी शीर्षक के तहत सभी जानकारियां देकर यह कार्ड बनाया जा सकता है और इससे जुड़ी सुविधाओं का लाभ उठया जा सकता है।

हेल्थ कार्ड या आइडी के माध्यम से लोग किसी भी राज्य में अस्पतालों, पैथ लैब और फार्मा कंपनियों में अपनी सेहत से जुड़ी जानकारियां अपनी मर्जी के हिसाब से ले सकेंगे। यानी इनमें कोई बाहरी व्यक्ति उनकी मंजूरी के बिना दखल नहीं दे सकेगा। हेल्थ कार्ड इस योजना का एक छोटा, किंतु सुविधापूर्ण हिस्सा है। इस योजना के फायदों को समझना हो तो इसे समग्रता में देखना होगा। असल में राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के तहत देश में जो डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र बनेगा, उससे आम नागरिकों के अलावा स्वास्थ्य पेशेवरों, सरकारी और निजी क्षेत्र के अस्पतालों-संगठनों आदि के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं अर्जति करना और उनकी निगरानी करना आसान हो जाएगा। मोटे तौर पर यह योजना चार महत्वपूर्ण हिस्सों में विभाजित की जाएगी। इसमें पहले चरण पर नागरिकों का डिजिटल हेल्थ कार्ड (आइडी) बनाया जाएगा। इसके बाद एक बड़ी भूमिका डिजिटल डाक्टर, स्वास्थ्य सुविधा पहचानकर्ता और निजी स्वास्थ्य रिकार्ड की रहेगी।

इस मिशन में देश के प्रत्येक डाक्टर को डिजिटल डाक्टर के रूप में एक विशेष पहचानपत्र भी दिया जाएगा, जो उनके मौजूदा पंजीकरण संख्या से अलग होगा। ये डाक्टर डिजिटल हस्ताक्षर कर सकेंगे, जिससे मरीजों को दूर बैठे इलाज का पर्चा लिख सकेंगे। इसके अलावा योजना में हर किस्म की स्वास्थ्य सुविधा को एक संख्या देकर विशेष इलेक्ट्रानिक पहचान दी जाएगी। उदाहरण के तौर पर मलेरिया बुखार को एम-15 कहा जा सकता है तो देश के किसी भी कोने में बैठा डाक्टर समझ सकेगा कि मरीज को असल में क्या बीमारी अतीत में हो चुकी है। केंद्रीय सर्वर से जुड़े रहने के कारण मरीज, डाक्टर, अन्य स्वास्थ्यकर्मी, अस्पताल और सरकार तक व्यक्ति की मंजूरी के साथ जरूरी जानकारियां जुटा सकेंगे और नागरिकों को स्वस्थ रखने के मिशन को साकार किया जा सकेगा।

आयुष्मान भारत अभियान का यह डिजिटल मिशल असल में अस्पताली प्रक्रियाओं को सरल बनाने की दिशा में उठाया गया महत्वपूर्ण कदम है।

Refernce: PIB, Jagaran

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