Friday, April 5, 2019

शानदार मैसेज *व्हाट्सएप्प ग्रुप पोलिटिकल पार्टी बहस-सत्ता का खेल तो चलेगा।सरकारे आएगी जाएगी, पार्टिया बनेगी बिगड़ेगी। मगर ये देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए। अटल बिहारी वाजपेयी

एक दिन मेरे  पास एक फोन आया,
‘हेलो रमेश   !
पहचाना?’
कुछ देर पहेलियाँ बूझने के बाद पता चला कि दूसरी तरफ मेरे  कॉलेज के दिनों का साथी  है.
एक पल में उम्र की सलवटें ग़ायब हो गईं. दोनों अपने परिवार और कामकाज के बारे में एक दूजे को बताने लगे.
दोनों जोधपुर में  ही रहते हैं. घरों में बस 10 मिनट की दूरी, फिर भी कभी मिले नहीं!
अगले ही रविवार को दोनों परिवार सहित मिले. एक दूसरे के सम्पर्क में कौन-कौन दोस्त हैं? इसकी एक सूची बनायी गयी. और देखते ही देखते पूरा कॉलेज-कुनबा फिर से एकजुट हो गया.
हमने एक व्हाट्सअप ग्रुप बना लिया.
सभी दोस्तों को एक दूसरे की ख़बरें मिलने लगीं.
एक दोस्त की बेटी को आय.आय.टी. में प्रवेश मिला तो सभी ने बधाइयों के अंबार लगा दिए. साथ ही मज़ाक भी हुआ--कि भाई तुम तो पढ़ने में फिसड्डी थे, बेटी तुम्हारी ही है न! एक दोस्त के बेटे ने भारत की तरफ से एशियाई खेलों में शिरकत की, सबका सीना चौड़ा हो गया. ये बात सबने अपने सहकर्मियों को बताई. जब भी भारत का कोई नया उपग्रह आकाश में उड़ता तो खबर आती कि ‘इसरो’ में काम करनेवाले एक दोस्त ने भी उसमें अपना योगदान दिया है. सबको अच्छा लगता.
लेकिन फिर ग्रुप की फिज़ा बदली. एक दोस्त ने प्रधानमंत्री की तारीफ़ में कुछ लिखा,
कुछ लोगों ने इसका समर्थन किया.
ये बात एक असमर्थक साथी को नागवार गुज़री. उसने घंटों तक रिसर्च की उसने भी प्रधानमंत्री की देश का सबसे बुरा आदमी और राहुल गांधी को सबसे अच्छा ,समझदार ,एवं नई सोच का युवा नेता और गरीबों अल्पसंख्यकों का मसीहा बताया
एक दूसरे को झूँठा साबित करने में किसी ने कोई कसर नहीं छोड़ी  बात इतनी बढ़ गई कि व्यक्तिगत लांछन शुरू हो गए
, आंकड़े सब अपने हिसाब से  तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं .
अब कोई भी विषय का विशेषज्ञ तो है नहीं , पर सुनी सुनाई बातों के आधार पर एक ‘शास्त्रार्थ’ शुरू हो गया. और जैसा कि इन बहसों में अक्सर होता है, बाकी मित्रों ने पलटवार किया कि ‘तुम देश के दुश्मन हो!’
असमर्थक मित्र के दिल को गहरी ठेस पहुंची. उसने बताया कि वो हर साल टैक्स भरता है, कि उसने भी कारगिल-युद्ध के शहीदों की मदद के लिए दान दिया था. और सबसे बड़ी बात उसके बड़े भाई सेना में हैं.
उसने कहा, ‘बात करने से कोई देशभक्त नहीं होता. तुम लोग पढ़े लिखे अनपढ़ हो!’
मुझे समझ न आया कि एक दूसरे से इतना प्यार करनेवाले दोस्त एक दूसरे के खिलाफ ऐसा जहर कैसे उगल सकते हैं? जो लोग कॉलेज के ज़माने में कभी एक दूसरे का साथ न छोड़ते थे, किसी भी मुद्दे पर कंधे से कंधा मिलकर खड़े होते थे अचानक उनको ये क्या हो गया है?
उन्होंने लिखा—दोस्तो! जब भी मैं ग्रुप देखता हूँ तो यही बातें दिखती हैं: इसको वोट दो. उसको मत दो.
वो चाय वाला है
वो पप्पू है
वो मूर्ख है
वो फेंकू है
इसका बाप चोर था.
उसके दादा  अय्याश  थे.
उसने गुजरात के दंगे करवाये
इसने सिखों को मरवाया
क्या हम आपस में मिलते हैं तो ये बातें करते हैं?
ग्रुप का मकसद एक दूसरे के साथ अपनी ज़िन्दगी के सुख-सुख बांटना है. एक दूसरे की सहायता करना है. इस ग्रुप के कारण एक दूसरे के प्रति वैमनस्य आये इससे बेहतर है कि हम ग्रुप को ख़त्म कर दें. ताकि जब मिलें तो आपस में प्यार से मिलें!
बात दोस्तों को समझ आयी. ग्रुप बरकरार रहा. चुनाव तो आएंगे और चले जाएंगे.
कोई भी जीते आपको सिर्फ मतदान करना है
मतदान करवाना आपकी जिम्मेदारी नहीं
पार्टियां अपना प्रचार खुद कर लेंगी
वहाशबाजी में पड़कर आप अपने अच्छे दोस्त को खो सकते हो
जीतेगा तो वो ही
जिसे जीतना है
दोस्ती में कड़वाहट आयी तो वो नहीं जायेगी.
*एक्शन पॉइंट:* राजनीतिक बहसों से बचिए. अपने काम और अपने संबंधों को प्राथमिकता देना ही बेहतर है.
 
सत्ता का खेल तो चलेगा।सरकारे आएगी जाएगी, पार्टिया बनेगी बिगड़ेगी। मगर ये देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए। अटल बिहारी वाजपेयी